भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI)

UPSC Prelims: Governance and Polity in India –Rights Issues, Constitution, Public Policy, Political System, Panchayati Raj, etc.

UPSC Mans: General studies 2

Polity and Indian Constitution – How the various constitutional posts are appointed, their functions, & powers. Also, those of the various constitutional bodies.

सुर्खियों में क्यों?

  • प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति द्वारा सेवानिवृत्त नौकरशाह ज्ञानेश कुमार और सुखबीर सिंह संधू को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया गया।
  • हालिया नियुक्ति 15 फरवरी, 2024 को अनूप चंद्र पांडे की सेवानिवृत्ति एवं 9 मार्च, 2024 को चुनाव आयुक्त अरुण गोयल के आकस्मिक त्याग-पत्र के बाद रिक्त हुए स्थानों पर की गई है।

मुख्य बिंदु:

  • ‘मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) अधिनियम, 2023’ के प्रभावी होने के बाद से इस तरह की पहली नियुक्ति है।
  • इस अधिनियम के अनुसार, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली एक चयन समिति जिसमें प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में विपक्ष का नेता शामिल होंगे, चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन करेंगे।
  • वर्तमान समिति में, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कैबिनेट मंत्री हैं और अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस के नेता होने के नाते विपक्ष का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • इस अधिनियम के प्रभावी होने से पूर्व चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्तों (CEC) की नियुक्ति केंद्र सरकार की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी।

भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के बारे में:

  • भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) एक स्वतंत्र संवैधानिक निकाय है, जो संसद और राज्य विधान सभाओं के चुनाव सहित विभिन्न प्रकार के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली और प्रक्रिया को संचालित करने के लिए उत्तरदायी है।
  • संविधान का भाग XV, अनुच्छेद – 324 से 329 आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल और पात्रता आदि से संबंधित है।

भारत का चुनाव आयोग निम्नलिखित चुनाव सम्पन्न करवाता है:

  • भारत का राष्ट्रपति;
  • संसद;
  • राज्य विधानमंडल;
  • उपराष्ट्रपति।

संरचना और अधिकार

  • अपनी स्थापना के बाद से, आयोग में एकल सदस्यीय निकाय था किन्तु चुनाव आयुक्त संशोधन अधिनियम – 1989 के पश्चात इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324

  • चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित संख्या में अन्य चुनाव आयुक्त होते हैं।
  • राष्ट्रपति चुनाव आयोग से परामर्श के बाद क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति भी कर सकते हैं।
  • चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों की सेवा की शर्तें और कार्यकाल भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों को समान दर्जा प्राप्त है और वे भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान वेतन और भत्ते प्राप्त करते हैं।
  • मुख्य चुनाव आयुक्तों और दो चुनाव आयुक्तों के पास सामूहिक निकाय के रूप में चुनाव से संबंधित सभी निर्णय लेने की समान शक्तियाँ हैं।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त और/या दो अन्य चुनाव आयुक्तों के बीच मतभेद की स्थिति में, मामले का निर्णय आयोग द्वारा बहुमत से किया जाता है।

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता

  • मुख्य चुनाव आयुक्त को ‘साबित कदाचार या अक्षमता’ के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान हटाने की प्रक्रिया के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के बाद उनकी सेवा शर्तों में अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
  • किसी अन्य चुनाव आयुक्त या क्षेत्रीय आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश के अलावा पद से नहीं हटाया जा सकता।

चुनाव आयोग के सामने चुनौतियाँ और आलोचनाएँ:

  • चुनाव आयोग की सर्वाधिक आलोचना इस बिंदु पर की जाती रही है कि मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य दो आयुक्तों के चुनाव में पारदर्शिता का अभाव है तथा यह सरकार की पसंद पर आधारित है।
  • संविधान के अनुच्छेद – 324 के अनुसार राष्ट्रपति को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति करनी चाहिए तथा यह नियुक्ति संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के अधीन हो।
  • यद्यपि सरकारें इस सम्बन्ध में कानून बनाने में विफल रही तथा मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा ही की जाती रही है।
  • संविधान ने चुनाव आयोग के सदस्यों की योग्यता (कानूनी, शैक्षणिक, प्रशासनिक या न्यायिक) निर्धारित नहीं की है।
  • संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल निर्दिष्ट नहीं किया गया है।
  • संविधान में सेवानिवृत्त चुनाव आयुक्तों को सरकार द्वारा किसी भी आगे की नियुक्ति पर रोक का प्रावधान नहीं किया गया है जो उन्हें पक्षपात के प्रति असुरक्षित बनाता है।
  • पिछले कुछ वर्षों में राजनीति में धन और आपराधिक तत्वों का प्रभाव बढ़ा है, साथ ही हिंसा और चुनावी कदाचार भी बढ़े हैं, जिसके परिणामस्वरूप राजनीति का अपराधीकरण हुआ है। भारत का चुनाव आयोग इस गिरावट को रोकने में असमर्थ रहा है।
  • चुनावों  के दौरान सरकारों द्वारा सत्ता का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जाता रहा है, जो बड़े पैमाने पर नौकरशाही का स्थानांतरण करती है और प्रमुख पदों पर अपने पसंद के अधिकारियों को नियुक्त करती है एवं चुनाव प्रचार के लिए आधिकारिक वाहनों और इमारतों का उपयोग करती है, जो चुनाव आयोग के आदर्श आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन हैं किन्तु इसे चुनाव आयोग द्वारा अमूमन नज़रंदाज़ किया जाता है एवं कड़े कदम नहीं उठाये जाते हैं।
  • हाल के वर्षों में यह धारणा जोर पकड़ रही है कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता में कमी आती जा रही है, जिसका असर संस्था की छवि एवं कार्यप्रणाली पर पड़ा है।
  • चुनावों में EVM में खराबी, हैक होने और वोट दर्ज नहीं करने के आरोप लगते आये हैं, जिससे आम जनता का इस संस्था पर भरोसा कम हुआ है।

मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यावधि) अधिनियम, 2023

  • मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें और कार्यावधि) अधिनियम , 2023 को राज्यसभा में 10 अगस्त, 2023 को पेश किया गया जो 12 दिसम्बर, 2023  को राज्यसभा एवं  21 दिसम्बर, 2023 को लोकसभा से पारित हुआ।
  • यह अधिनियम चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तें और कार्य संचालन) एक्ट, 1991 को प्रतिस्थापित करता है।

अधिनियम की पृष्ठभूमि:

  • 2 मार्च, 2023 को जस्टिस जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर ऐतिहासिक फैसला दिया।
  • इस पीठ ने अपने फ़ैसले में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और मुख्य न्यायाधीश की समिति की सलाह पर की जाए तथा जब तक चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कानून नहीं बनता है तब तक सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई यह व्यवस्था लागू रहेगी।
  • चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की शक्ति को कार्यपालिका के एकमात्र अधिकार क्षेत्र से छीन लेने का सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला भारत के चुनाव निगरानी संस्था की स्वायत्तता के लिए एक उल्लेखनीय फैसला है ।
  • इस फैसले से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग की कार्यात्मक स्वतंत्रता और संवैधानिक संरक्षण सुनिश्चित हो सकेगा।

अधिनियम के प्रावधान

चयन समिति:

मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति एक चयन समिति द्वारा की जायेगी।

इस समिति में निम्नलिखित सदस्य शामिल होंगे:

(i) अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री,

(ii) सदस्य के रूप में लोकसभा में विपक्ष के नेता, और

(iii) प्रधानमंत्री द्वारा सदस्य के रूप में नामित एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री।

खोजबीन समिति (सर्च कमेटी):

  • चयन समिति पर विचार करने के लिए खोजबीन समिति पांच व्यक्तियों का एक पैनल तैयार करेगी। खोजबीन समिति की अध्यक्षता कैबिनेट द्वारा की जाएगी।
  •  इसमें दो अन्य सदस्य होंगे जो केंद्र सरकार के सचिव स्तर से नीचे के नहीं होंगे। उनके पास चुनाव से संबंधित मामलों का ज्ञान और अनुभव होना चाहिए।
  • चयन समिति उन उम्मीदवारों पर भी विचार कर सकती है जिन्हें खोजबीन समिति द्वारा तैयार पैनल में शामिल नहीं किया गया है।

मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों की  योग्यता:

  • जो व्यक्ति केंद्र सरकार के सचिव के पद के बराबर पद पर हैं या ऐसे पद पर रह चुके हैं, वे ही मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य चुनाव आयुक्तों के रूप में नियुक्त होने के पात्र होंगे।
  • ऐसे व्यक्तियों के पास चुनाव प्रबंधन और संचालन में विशेषज्ञता होनी चाहिए।

वेतन और भत्ते:

  • वर्ष 1991 के एक्ट में प्रावधान था कि चुनाव आयुक्त का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बराबर होगा। इस अधिनियम में प्रावधान है कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त का वेतन, भत्ते और सेवा शर्तें कैबिनेट सचिव के समान होंगी।

कार्यावधि:

  • वर्ष 1991 का एक्ट कहता है कि CEC और अन्य EC छह वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, पद पर बने रहेंगे। यदि किसी चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया जाता है तो उसका कुल कार्यकाल छह वर्ष से अधिक नहीं हो सकता।
  • अधिनियम इसी कार्यकाल को यथावत रखता है किन्तु अधिनियम के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होंगे।

कार्य संचालन:

  • चुनाव आयोग के सभी कार्यों को सर्वसम्मति से संचालित किया जाएगा।
  • किसी भी मामले पर मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त के बीच मतभेद की स्थिति में उसका निर्णय बहुमत के माध्यम से किया जाएगा।

पद से हटाना और त्याग-पत्र:

  • संविधान के अनुच्छेद – 324 के तहत मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान तरीके से ही उसके पद से हटाया जा सकता है। यह प्रक्रिया राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से पूरी की जाती है जो एक ही सत्र में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव पर आधारित होता है।
  • मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से हटाए जाने के प्रस्ताव को निम्नलिखित के साथ अपनाया जाना चाहिए: (i) प्रत्येक सदन की कुल सदस्यता का बहुमत समर्थन और (ii) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का कम से कम दो-तिहाई समर्थन।
  • किसी चुनाव आयुक्त को केवल मुख्य चुनाव आयुक्त के सुझावों पर ही पद से हटाया जा सकता है।
  • साथ ही, 1991 के एक्ट में प्रावधान है कि CEC और अन्य EC भारत के राष्ट्रपति को अपना त्याग-पत्र सौंप सकते हैं।
  • अधिनियम इस दोनों प्रावधानों को यथावत रखता है।

निष्कर्ष:

  • भारतीय संविधान कई संस्थाओं का प्रावधान करता है जो हमारे लोकतंत्र की रीढ़ हैं तथा प्रत्येक संस्था का एक अलग उद्देश्य और चरित्र होता है। इस क्रम में उपर्युक्त नए अधिनियम के आधार पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति चुनाव आयोग की स्वतंत्रता एवं  संवैधानिक पारदर्शिता की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:

राज्य चुनाव आयोग:

  • गठन : 73वें और 74वें संविधान संशोधन के बाद संविधान के अनुच्छेद – 243K के तहत राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया।
  • संरचना : आयोग मुख्य निर्वाचन अधिकारियों और संबंधित राज्य सरकारों के अधिनियमों द्वारा आवश्यक निर्दिष्ट सदस्यों और कर्मचारियों  से बना होता है।
  • कार्य: यह शहरी स्थानीय निकायों; जैसे – नगर पालिकाओं, नगर निगमों, पंचायतों और भारत के चुनाव आयोग द्वारा निर्दिष्ट किसी भी अन्य के लिए चुनाव कराने हेतु उत्तरदायी हैं।

 

 

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